चोटी की पकड़–36
दिलावर ने नम्रता से कहा, "हुजूर का जैसा हुक्म, किया जाएगा।"
"पुराने गढ़ के पीछे ठहराओ। खुद दो-मंज़िले पर रहो। रसद ले जाया करो, इन्हें पकाया-खिलाया करो; रामफल को साथ रखना। दूसरा काम तुम लोगों से न लिया जाएगा। चोर-दरवाजे की ताली ले जाओ। वे जब बाहर निकलना चाहें, उसी से निकाल दिया करो, रात के बारह से चार के अंदर। जब कहें तब खोलकर भीतर ले आने को पहले से तैयार रहा करो, एक सेकंड की देर न हो। उनका काम न देखना, हम खुद देख लेंगे। खाना अच्छा पकाया करना, मछली-मांस भी। हमारी रसोई में दो-तीन भाजियाँ पकती हुई देख लो।"
"जो हुक्म, हुजूर।"
"ऐसा करो, अगर ये भी तुमको फँसाना चाहें तो न फँसा पायें। अब तो तुम्हारी दाढ़ी बढ़ गई है। रामफल की मूँछें भी बढ़ गई होंगी। यहाँ से चलकर बहल जाओ। रामफल का मियाँवाला रूप तुम बना लो और तुम्हारा ठाकुरवाला वह। नाम भी बदल लो। उसको अपने नाम से पुकारना और उसी को ले जाने के लिए भेजना। हम कभी-कभी तुम लोगों से मिला करेंगे।"
"जो हुक्म।" दिलावर ने प्रणाम किया। राजा साहब की ओर मुँह किए हुए पिछले-कदम हटा। तालाब के पच्छिमवाले रास्ते से बाहर निकलकर गढ़ की तरफ चला, दूसरी ड्योढ़ी से घुसकर रामफल से मिलने के लिए। प्रभाकर के साथी बाज़ार में हैं। वह ड्योढ़ी के आगंतुक-आगार में बैठा है। कभी निकलकर पान खाने के लिए बाहर चला जाता है। पैनी नज़र से इधर-उधर देख लेता है।
राज्य की क्रिया का ढंग सब स्थानों में एक-सा है। सब जगह एक ही प्रकार के नारकीय नाटक, षड्यंत्र, अत्याचार किए जाते हैं। सब जगह रैयत की नाक में दम रहता है।
चारे का प्रबँध ही सत्यानाश का कारण बनता है। अत्याचार से बचने की पुकार ही अत्याचार को न्योता भेजती है।
जमींदार हो, तअल्लुकेदार; राजा हो या महाराज; कृपा कभी अकारण नहीं करता। जिस कारण से करता है, वह इसकी जड़ मजबूत करने के लिए, मुनाफ़े की निगाह से, दूने से बढ़ी हुई होनी चाहिए।
उसका कोप भी साधारण उत्पात या प्रतिकार के जवाब में असाधारण परिणाम तक पहुँचता है। सारे राज्य में उसके खास आदमियों का जाल फैला रहता है।
वह और उसके कर्मचारी प्रायः दुश्चरित्र होते हैं, लोभी, निकम्मे, दगाबाज़। फैले हुए आदमी प्रजाजनों की सुंदरी बहू-बेटियों, विरोधी कार्रवाइयों, संघटनों और पुलिस की मदद से ज़मींदार के आदमियों पर किए गए अत्याचारों की खबर देनेवाले होते हैं।
निर्दोष युवतियों की इज्जत जाती है, रिश्वत में रुपए लिए जाते हैं, काम में आराम चलता है, बचन देकर रैयत से पीठ फेर ली जाती है, बहाना बना लिया जाता है।
पुलिस भी साथ ली जाती है। कभी चढ़ा-ऊपरी की प्रगति में दोनों अपने-अपने हथियारों के प्रयोग करते रहते किसी गाँव में मुसलमानों की संख्या है। त्योहार है। गोकुशी वर्जित है; पर बकरा महँगा पड़ा, गोकुशी की ताल हुई।
आदमी से ख़बर मिली। एक रोज़ पहले, रात को पचास आदमो भेज दिए गए। कुछ मुखियों को उन्होंने मार गिराया।